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मैं हूँ... एक कहानी… जिसमें कोई किरदार नहीं, एक बादल... जिसमें नमी की एक बूँद नहीं, एक समन्दर… जिसमें सब कुछ है, जिसके लिए कुछ नहीं, और ऐसा ही सब कुछ… नाम है "रामकृष्ण"...
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सोमवार, नवंबर 22, 2010
तुम्हें जब धूप का एहसास होगा
मेरी बातों पे तब विश्वास होगा
अभी तो मुस्कुरा लो हादसों पर
मगर कल जब यही इतिहास होगा ?
अहिल्या आज फिर पथरा गयी है
किसी राजा को फिर वनवास होगा
जमेंगे पाँव मजबूती से इक दिन
कोई कब तक हवा का दास होगा ?
इसी उम्मीद पर सब जी रहे हैं
कभी सुख भी हमारे पास होगा
फिजा में उड़ रहे हो आज तो क्या
हवा का जोर बारहमास होगा?
रचनाकार: सर्वत एम जमाल

3 टिप्पणियाँ:

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

कमाल की रचना लिखी है। बधाई हो।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Deepesh Gautam ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना लिखी है, बधाई हो आपको |

Deepesh Gautam ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना लिखी है, बधाई हो आपको |

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